ऊन्मुक्त

कुछ स्वछ्न्द विचार और उन्मुक्त चिन्तन

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बुधवार

चुनाव के दिन आये रे भैया

चुनाव के दिन आ गए फिर से. वैसे इतने बड़े देश में कोई ना कोई चुनाव तो होता ही रहता है लेकिन इस चुनाव की बात कुछ और है. लोकसभा चुनाव, चुनाव जो अगले पांच साल के लिए हमारे देश और समाज को दिशा देने वाला चुनाव. वैसे चुनाव जब होगा सो होगा लेकिन इस चुनाव से पहले से ही मैंने तयारी करना चालु  कर दिया था.

सबसे पहले घर से TV हटाया। फ़ोन पे WhatsAPP के ढेर सारे ग्रुप्स  को 'म्यूट' किया. Facebook  पे जाके अपने Friendlist की सफाई की. बहुतों को लात मार  के भगाया, चाहता तो यही था लेकिन ये विकल्प नहीं था इसलिए  Unfriend  कर के ही संतोष करना पड़ा.  ये अधिकतर वो लोग थे जिन्होंने कसम खाई है  की हर दिन ५० पोस्ट और फॉरवर्ड डालना ही डालना है. अधिकतर फॉरवर्ड्स आपको याद दिलातें हैं की अगर आप उनके द्वारा  समर्थित  दल को मत नहीं देते हैं तो दुनिया का प्रलय हो जायेगा

दूसरा बड़ा  काम था, घर से टीवी  को हटाना. टीवी  के हटतें ही जैसे दुनिया बदल गयी. घर शांत, मन शांत और दिमाग शांत.

इसके बाद  का काम था की राजनितिक बहस से बचने के लिए जिस पार्टी के समर्थक से मिलो उसी के सुर में सुर मिलाना. उसे जिस पार्टी को वोट देना है उसी  को देगा, बहस की कोई गुंजाइस ही नहीं है फिर फ़ालतू की मगजमारी  बहस क्यों करना. बेचारे को ये बोल के खुश कर दो की आप भी उसी की पार्टी को वोट दे रहे हो.

अभी तक तो मेरी तरकीब सफल है और मेरा मानसिक संतुलन बना हुआ है. आगे देखतें क्या होता है.

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