ऊन्मुक्त

कुछ स्वछ्न्द विचार और उन्मुक्त चिन्तन

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शनिवार

श्री गणेशाय नमः

मैने जब २००४ में अपना अंग्रेजी चिट्ठा शुरु किया था तो उस समय Internet पर हिन्दी की उपस्थिती नाममात्र की थी । लेकिन जल्द हीं कुछ हिन्दी उत्साही व्यक्तीयों के प्रयासों से हिन्दी लिखना और पढना दोनों आसान हो गया. और तब से मैं हिन्दी चिट्ठा लिख्नने का मन बना रहा था । आल्सय ने ३ साल तक मेरे उपर अपना हुक्म चलाया लेकीन थोडी देर पहले बेचारे की दुर्गती कर मैने नये साल अपना चिट्ठा चालु कर ही लिया।
अब सवाल ये है की क्यों ? क्या जरुरत है ?
सबसे पहले क्यों का उत्तर ।
  • इसलिये की मैं सोचता हिन्दी मैं हुं। सपने हिन्दी मैं देखता हुं। बचपन में A B C D से पहले अ आ .. सीखा था।
  • इतने सारे लोगों को अपनी प्रिय भाषा हिन्दी में लिखते देख मुझ से रहा नही गया।
  • एक हिन्दी भाषी राष्ट्र के समाजीक परिवेष और कालक्रम का वर्णन हिन्दी से बेहतर किसी और भाषा में नहीं हो सकता।
अब क्या जरुरत थी?
थोडा सा कठीन प्रश्न है, जबाब सीधा देना थोडा मुश्कील है। लेकीन इस दुनिया में बहुत से चीजों की कोइ जरुरत नहीं है । जैसे, जार्ज बुश की, एकता कपुर की, नाभीकिय बमों की.. तो एक और चिट्ठा के बढने से कोइ गम्भीर समस्या नही पैदा होगी। वैसे भी लैपटाप मेरा, internet connection मेरा, समय मेरा... कुछ भी कर सकता हुं।

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9 टिप्पणियाँ:

Blogger Akhand ने कहा…

बडी प्रस्न्नता हॊ रही हे आप्का हिन्दी चिट्टा देख कर

7 जनवरी 2007 को 3:10 am बजे  
Blogger Akhand ने कहा…

hey san unable to control this insticnt to comment again...
I like what ever u say in last para....even I was thinking... ki jab koi bhi commment kar sakta hai, main chahe 1000 baar comment karu, sab kuch to mera hi hai.. Tum bhi!!

8 जनवरी 2007 को 9:40 pm बजे  
Blogger Santosh ने कहा…

you are always welcome dear... ;-)

9 जनवरी 2007 को 7:12 pm बजे  
Blogger Nitin Bagla ने कहा…

बहुत खुशी हुई तुम्हे हिन्दी में लिखता देख..लगे रहो..कुछ वर्तनी अशुद्धियाँ हैं..पर कुछ दिन लिखते रहने से साफ हो जायेंगी..
ऊन्मुक्त - उन्मुक्त
मैं - में

अपने चिट्ठे को http://www.narad.akshargram.com पर पंजीकृत करवा को ताकि बाकी हिन्दी ब्लाग बिरादरी भी इसके बारे में जान सके
यह ब्लाग टिप्पणी करने के लिये ब्लागर खाता माँगता है...जो कि जरूरी नही सबके पास हो..कृपया ध्यान दें

16 जनवरी 2007 को 8:39 am बजे  
Blogger Santosh ने कहा…

@Nitin.. Just trying to get over this initial hiccups on working on this unicode writer.. but soon will sort it out..

16 जनवरी 2007 को 8:55 pm बजे  
Blogger ePandit ने कहा…

हिन्दी में लिखना शुरु करने हेतु बधाई। मेरे विचार से आप अभी नेट पर अन्य हिन्दी प्रयोगकर्ताओं के संपर्क में नहीं हैं। नेट पर लगभग ४०० हिन्दी ब्लॉगरों का समूह है। हमारे हिन्दी ब्लॉगजगत में आइए। वहाँ आपकी सभी हिन्दी लिखने वालों से मुलाकात होगी। हमारी कुछ सामुदायिक साइटें हैं जिनके द्वारा हम सब आपसी संपर्क में रहते हैं। आपसे अनुरोध है कि आप इनमें शामिल हों। इससे हमारा परिवार बढ़ने के अतिरिक्त आपको भी नियमित पाठक मिलेंगे। मैं आपको हिन्दी जगत की कुछ साइटों के बारे में बताता हूँ।

नारद एक साइट है जिस पर सभी हिन्दी चिट्ठों की पोस्टें एक जगह देखी जा सकती हैं। हिन्दी चिट्ठाजगत में चिट्ठों पर आवागमन नारद के जरिए ही होता है।

अतः नारदमुनि से आशीर्वाद लेना न भूलें। इस लिंक पर जाकर अपना चिट्ठा पंजीकृत करवा लें। नारद आशीर्वाद बिना हिन्दी चिट्ठाजगत में कल्याण नहीं होता।

'परिचर्चा' एक हिन्दी फोरम है जिस पर हिन्दी टाइपिंग तथा ब्लॉग/वेबसाइट संबंधी मदद के अतिरिक्त भी अपनी भाषा में मनोरंजन हेतु बहुत कुछ है।

अतः परिचर्चा के भी सदस्य बन जाइए। हिन्दी लेखन संबंधी किसी भी सहायता के लिए इस सबफोरम तथा ब्लॉग संबंधी किसी भी सहायता के लिए इस सबफोरम में सहायता ले सकते हैं।

उम्मीद है जल्द ही नारद और परिचर्चा पर दिखाई दोगे। किसी भी मदद हेतु निसंकोच मुझसे संपर्क करें।

श्रीश शर्मा 'ई-पंडित'

3 मार्च 2007 को 5:31 pm बजे  
Blogger उन्मुक्त ने कहा…

अपने नाम राशि का स्वागत है।

9 मार्च 2007 को 8:36 am बजे  
Blogger बसंत आर्य ने कहा…

उन्मूक्त जी आपका ये ब्लाग पहली बार पढा. ऐसा मत कहिए कि लैपटाप आपका , कनेकशन आपका, वक्त आपका. अरे आप भी तो हमारे ही है.

24 जुलाई 2007 को 2:05 am बजे  
Blogger @nks ने कहा…

आपके आखिरी उत्तर से एक मैं पूरी तरह सहमत हूँ. अपनी भाषा मैं किसी को सुनाने मैं जो संतुष्टि मिलती है, वो फिरंगी भाषा मैं नही.

आपकी टिपण्णी के लिए धन्यवाद. आशा करता हूँ आगे भी आप मेरे कार्य को सराहते रहेंगे.

17 सितंबर 2007 को 8:30 am बजे  

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